एक अनजान सा रिश्ता
एक अनजान सा रिश्ता


बस एक बार मैंने उसे खाना खिलाया था,
जब जब घर से निकली
उसको अपने पीछे पाया!!
कौन था वो क्या लगता है मेरा,
कुछ नहीं जानती मैं,
बस कुछ ही मुलाकातों से हूँ
उसे अपना मानती!!
कोई नहीं अपनाता उसे
दर दर भटकता रहता
उसे दर नहीं मिलता,
उस मोहल्ले में लाखों घर हैं
लेकिन उसे घर नहीं मिलता!!
उन तरसती आँखों में मैंने आस देखी है,
उसकी वफादारी कुछ ख़ास देखी हे!!
काश मैं उसे अपना सकती,
अपने किराए के कमरे में ला सकती!!
जब भी बालकनी पे जाती हूँ,
उसकी तरसती आँखों में
प्यार ही प्यार पाती हूँ!!
भले ही है एक गली का कुत्ता वो,
लेकिन सबका दिल रखता है,
जाओ बताओ इन लोगों को
की वो भी एक दिल रखता है!!