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Jyoti Agnihotri

Others

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Jyoti Agnihotri

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"एजुकेशन "पूरी...

"एजुकेशन "पूरी...

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पिता की कमर जब झुक जाती है,

आंखों की पुतलियाँ विस्मय से फट जातीं हैं,

तब कहीं जा कर एजुकेशन पूरी हो पाती है।


समझ नहीं पता वह कि,

विद्यालय है विद्यादान कर रहा ,

या वह स्वयं ही दिन-रात है तुलादान कर रहा।


ज्ञान क्या अब इतना ठंडा हो गया ,

की नोटों की गर्माहट उससे मांगी जाती है।


किताबों के पन्नों से भी ज़्यादा,

जब नोटों की गड्डी फीस काउन्टर,

पर उससे गिनवा ली जाती है,

तब कही जा कर एजुकेशन पूरी हो पाती है।


ये फीस और वो फीस कसर रह जाये

तो डेवलपमेंट फीस भरवाई जाती है

तब कहीं जा कर एजुकेशन पूरी हो पाती है।


विद्या के मंदिर हो गए अब ट्रेडिंग कम्पनी,

यहाँ सरस्वती जी की जगह अब लक्ष्मी जी पूजी जातीं हैं।

तब कहीं जाकर ये अनपढ़ पीढ़ी पढ़ पाती है।


जब तक ना ठप्पा लग जाए इंग्लिश मीडियम का

तब तक मार्क शीट भी अधूरी कहलाती है।

तब कहीं जा कर हम हिंदी भाषियों की पीढ़ी

इंग्लिश मीडियम बन सभ्य कहलाती है।


ऐसे में भी इस मानव-श्रृंखला की एक कड़ी,

इंग्लिश मीडियम छोड़ो हिंदी मीडियम,

में भी नहीं पढ़ पाती है।

शायद उसके पिता की फटी जेब,

इंग्लिश मीडियम की कतार ,

उसकी पहुँच से दूर ले जाती है।


सच तो यह है कि जेबवालों की,

जेब में भी अब एजुकेशन कहाँ समाती है।

फीस के चक्कर में कईयों की दुनिया अधूरी रह जाती है।


यूँ व्यंग्य न कसो भाई!

आजकल कहाँ एजुकेशन पूरी हो पाती है।


स्वप्नों की मृगमरीचिका के कारण,

संस्थानों की मनमानी चल जाती है।

इतना सब देखते हुए भी कैसे ,

व्यवस्था की आँखों पे पट्टी बंध जाती है।


सुनहरे भविष्य की कल्पना ,

उसे सदैव ही छलना सी छल जाती है।

किन्तु परन्तु और अस्तु,

विपन्न की एजुकेशन अधूरी ही रह जाती है।


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