युधिष्ठिर की पीड़ा
युधिष्ठिर की पीड़ा
दुर्योधन को थी पीड़ा भारी
स्वयं को समझ पर बैठे महाभारत का अधिकारी
ना चैन आया उन्हें कौरवों के मरणोपरांत
देख धृतराष्ट्र को विचलित रहते
गांधारी ने किया क्षमा उन्हें
परंतु बिलक बिलक यही कहते
"हुई भूल मुझसे यह कैसे
कारण वे समझ नहीं पाते समझ नहीं पाते"
द्रौपदी समझाती, उनको नकुल-सहदेव गले लगाते
परंतु, फिर भी दुर्योधन संताप के तालाब से बाहर नहीं निकल पाते
बोया जो है वह यही तो काटा जाएगा
खाली हाथ में आया मनुष्य, खाली हाथ ही जाएगा
श्रीकृष्ण कहे दुर्योधन से
उनकी भी बात वह समझ नहीं पाते हैं
हृदय डूबा घोर अंधेरे में
खुद को एक कोने में पाते हैं
दुर्योधन है कहते भाइयों से, मैं सन्यास ले लेता हूं
राज्य और प्रजा को तुम्हारे हवाले करता हूं
भीष्म पितामह समझाते समझाते उनको
तुम ऐसा ना व्यवहार करो
महाभारत के युद्ध में समर्पित
लोगों का ना संताप संताप ना संताप संताप करो,
सबके समर्पण का ऋण तुम्हें चुकाना होगा
दुर्योधन अब तो तुम्हें राज्य अपनाना होगा।
