STORYMIRROR

NEHA KANOJIA

Others

4  

NEHA KANOJIA

Others

दर्द

दर्द

1 min
292

ये ज़मीन जलती हैं , आसमां सुलगते हैं !!

उनकी बेनियाज़ी से जिस्म -ओ -जान सुलगते हैं ,

 इन बरसती रातों को क़ोई इतना बतला दे,

 तुम वहाँ तड़पते हो, हम यहाँ तड़पते हैं !!

 ऐसी कितनी बाते जो आज तक अधूरी हैं ,

 ऐसे कितने वादे जो दरमियाँ बहकते हैं !!

 तेरी नर्म बाहों का एक लम्स पाने की,,

सिर्फ मैं नहीं तालिब गुलिस्ता मचलते हैं !!

अब वह रुत नहीं शायद जिस मे फूल खिलते थे,

रास आ गई उस को सिरफिरी हवाएं भी,

अब मेरी किशतियों के क्यों ये बादबाँ सुलगते हैं !!


Rate this content
Log in