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Anup Shah

Others

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Anup Shah

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दोनों हाथों से मसल कर सूरज

दोनों हाथों से मसल कर सूरज

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दोनों हाथों से मसल कर सूरज,

चहरे पर लगा ली किरणें।


अब जिसे देखो

जाड़ों की सुबह सा,

ख़ूबसूरत लगता है। 


चाय की प्याली, 

फूलों की डाली, 

हर मंज़र सुहाना लगता है। 


कोई निकला वॉक पर,

तो कोई पूजा पाठ में लगा है। 


जाड़ों में तो सोता होगा ख़ुदा भी,

क्यों अज़ान से जगाया जाता है?


धीरे धीरे लेकर अंगड़ाई,

बचपन जाग उठता है, 

गोद में लेकर उसको पापा

दो मिनट सो लेता है।


प्यारी डाँट लगा कर माँ

दोनों को जगती है,

और फिरसे रोज़ की तरह 

स्कूल शुरू हो जाती है। 


शाम होते ही लौट आते हैं

घोंसलों में सारे, 

खाना खाते वक़्त छूटते हैं अक्सर 

हँसी के फव्वारे। 


रात आते ही अलाव बनकर

सूरज गर्माहट देने लगता है,

धीरे धीरे नन्हा बचपन

सपनों में खोता है। 


तज़ुर्बा अपना लिए

घर का हर बन्दा 

धीरे धीरे सो जाता है। 


और फिर....


दोनों हाथों से मसल कर सूरज,

दिन नया शुरू करता है।

दिन नया शुरू करता है।



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