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Kamal Purohit

Others

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Kamal Purohit

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दोहे

दोहे

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बाल मनोविज्ञान से, खुलते कितने राज।।

मनुज मस्तिष्क रात दिन, कैसे करता काज।।


शिशु का कैसे हो रहा, भ्रूण में से विकास?

कैसे माँ के गर्भ में, मिटे भूख अरु प्यास?


शिशु की शैशव काल में, माता ही पहचान।

माँ को ही वह समझता, अपना सारा जहान।।


महत्वपूर्ण रहा सदा, बचपन का वो काल।

जो कुछ सीखा इस समय, रखा उसे संभाल।।


भोला भाला बचपन है, भोला रहा दिमाग।

भोलेपन में बीतता, बचपन यह बेदाग।। 


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