दिल ने कहा फिर …
दिल ने कहा फिर …
किसी ने कहा मैंने एक कहानी लिखी
किसी ने कहा ज़िंदगी की रवानी लिखी
हाँ मैंने भी कुछ ऐसा समझा
कुछ ऐसा ही जाना
पर अनजान उस लेखनी से
जिस से सारा जग अनजाना
हम कहाँ कुछ जान पाये
ये रास्ते , ये लम्हे उस ने बनाये
चलते चलते , जब रुक गये कहीं
एक आवाज़ सी आयी
वो जो सब के अंदर बैठा
आराम से निहार रहा
हर मोड़ पर संभल और टोक रहा
रुक जाना नहीं
ये ठिकाना नहीं
कर्म कर कुछ ऐसे की
उस जगह पे जा के आराम कर सके
जो सही में तेरी अपनी है
जिस की खोज में सारी दुनिया लगी
बस वहाँ पहुँच
तुझे नहीं करनी देरी है
तू एक मुसाफ़िर ..यशवी
ये दुनिया बस कर्म की नगरी
यहाँ तो लगानी बस फेरी है
चल चला चल … रुकना नहीं
करनी नही देरी है…