दिल की जुबां
दिल की जुबां
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शब्द रूक जाते है
जुबां पें आते आते
बात होती ही नहीं है
जो बतानी जरूरी है
हर बार वो बात अनकही सी
क्यूँ नहीं कर पाता है दिल
हर बार वो बात अधूरी सी
क्यूँ छोड देता है दिल
सही समय पे रुक जाना
बीच राह में छोड़ देना
क्यूँ तू ऐसा करता है दिल
सहमा -सहमा सा फिर
चुपचाप सा रहता है दिल
भीड़ में अकेला
भटकने लगा है दिल
साथ तो है पर
खोया है कही और दिल
क्यूँ जो कहना है
नहीं कह पाता है दिल
दिल की दबी बातें
लफ्ज़ बनके निकले
मिल जाये फिर जुबां
और सुकून से जियें
मेरा अशांत सा दिल
शब्द बनके बोलना
फिर से सीख़ ले ए दिल
