दीवारें बोलती हैं
दीवारें बोलती हैं
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छिप छिपकर,
उनसे मिलना
उनके आँगन तक जाना
अंधेरी रातों में,
किसी को देखकर छिप जाना!
सब सुनती हैं,
वो दीवारें
जो उनके घर के पास मे हैं
जो मेरे धड़कन के साँस में हैं
चुँगलिया करती हैं
उनकी दीवारें!
मगर वो मुझसे मिलने के लिए,
तरसती हैं!
उनकी आँखें, आँसुओं की बरसात करती हैं
जब मिलने का मन होता है
दिल मेरा रोता हैं
मगर क्या ??
बीच में दीवारें आ जाती हैं
गूँगी नहीं हैं,
दीवारें बोलती हैं
वो सब जानती हैं
जितनी देर बातें किये छिपकर
वो मुझे पहचानती हैं!
