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D.N. Jha

Others

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D.N. Jha

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दीपक‌ हूॅं

दीपक‌ हूॅं

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पल-पल जलता हूॅं, अंधेरों से मिलता हूॅं।

ना वो मेरा होता है,ना मैं उसका होता हूॅं।‌।


है कितना फासला, है कितनी दूरी।

मालूम ही तो नहीं, क्या है मजबूरी।।


मैं कभी जलता हूॅं और मैं कभी बुझता हूॅं।

पता नहीं मैं खुद को क्यों नहीं सूझता हूॅं?


शायद मेरी यही नीयती शायद यही नीमित्त है।

केवल यही सोचकर मेरी अंतरात्मा भी तृप्त है।‌।


आपका 'दीपक' हूॅं और आपका 'दीपक' ही रहूंगा।

वर्षों से जलता रहा हूॅं और मैं जलता ही रहूंगा।।



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