धर्म का विचार*
धर्म का विचार*
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चंद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो हृदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।।
मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की।
उसको यूँ ही दबाने से क्या फायदा।
प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहां।
ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा।
डग मगाते कदमो से जाओगे फिर तुम।
तब तक तो बहुत देर हो जायेगा।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चंद्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।।
नाव जीवन की तेरी मझधार में पड़ी।
झूठ फरेब लोभ माया को तूने अपनाया था।
जब तुम को मिला ये मनुष्य जन्म।
क्यों न सार्थक इसे तू अब कर रहा।
जाकर जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो।
और अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो।।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चंद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन सा कर लो हृदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।।