धरा पर स्वर्ग...
धरा पर स्वर्ग...
इस भाग-दौड़ की जिन्दगी में,
ठहराव सिर्फ अभी आया है।
जब पहली बार खुद को,
प्रकृति की गोद में पाया है।
नई कोंपलों को पल्लवित होते देखा,
गिलहरियों को उछलते - कूदते देखा।
चिरैया का चहचहाना,
किट पकड़ बच्चों को खिलाना।
अदृश्य कोयल की सिर्फ कूक सूने,
तिनका - तिनका एकत्र कर,
बया अनोखा नी
ङ बुने।
सर्वत्र पर्यावरण का सौन्दर्य समाया है,
यह आनन्द इस ठहराव में ही मिल पाया है।
टिटहरी की क्षेत्र रक्षार्थ सजगता,
गिरगिट की रंग बदलने की सहजता।
सोन चिड़िया का संयुक्त होकर गाना,
बादल देख मयूर का,
फैलाकर पंख मुस्काना।
मानो धरा पर स्वर्ग उतर आया है,
यह आनन्द इस ठहराव में ही मिल पाया है।