ढलता सूरज
ढलता सूरज
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ढलता सूरज
गहराती लालिमा
अंधेरे में भी आस
दूर आसमान में
आधा चंद्रमा देता है साथ
जब सूरज डूब जायेगा
मैं दूँगा साथ
अद्भुत प्रकृति के अद्भुत रंग
मानव के साथ चलती संग संग
ग़लती हमारी जो पर्यावरण
बिगाड़ते
मुसीबत आने पर दोष प्रकृति
पर डालते
हर रोज़ सुबह
सूरज का उगना
हर शाम सूरज का ढलना
क्या कोई रोक पाया ?
फिर क्यों मानव स्वयं पर
इतराया ?
सब खेल कर्मों का है
सतकर्म कर विजयी भव
सूरज बन
उगता भी लाल
डूबता भी लाल
पर..
दोनों का हर कोई करता
इंतज़ार ..
