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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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दौड़

दौड़

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हर तरफ यहां दौड़ है

कहीं नहीं यहां रोड है

फिर भी यहां पे लोग,

लगा रहे दौड़ है

यहां रुकता कोई नहीं,

हर जगह चाहे मोड़ है

सब भाग रहे है,

सब नाच रहे है,

सब में यहां होड़ है

यहां कोई नहीं रखता 

सब्र का कोड है

हर तरफ यहां दौड़ है


सबको जल्दी है,

सबको लगानी हल्दी है,

हर तरफ ही यहां,

भीड़ का बोर्ड है

खुद के लिये वक्त नहीं ,

पैसे की यहां दौड़ है

कोई यहां अपना नहीं,

सबके सब शातिर चोर है

हर तरफ यहाँ दौड़ है


भूखे रहे, प्यासे रहे

फिर भी पूरी न हुई दौड़ है

अपनी तरफ न दौड़े,

ज़माने में हो गये बौने,

अब हो गये जब बूढ़े,

रो रहे है, पछता रहे है,

खास दौड़ते अपनी ओर है

अब पछताने से क्या होगा

जब खत्म हो गई दौड़ है,

इसलिये तू सुन ले साखी,

समय रहते लगाना दौड़ है

दौड़ भी पैसे की नहीं,

आईने के जैसी नहीं,

लगानी मन की चट्टानों पे,

पहनकर सच का कोट है

हर तरफ यहां दौड़ है



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