Vinay Panda

Others

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दास्तान-ए-परिवार

दास्तान-ए-परिवार

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क्या कहें हम अपनी क़िस्मत को

दिल तो गाता है हर क्षण

मगर नसीब सोती मिली।


साथ भी परिवार का,

है कुछ अजीबो-गरीब

चाहिए उनको पैसा कि

हम लिखनें में मशगूल


डिगरी तो पहले की थी

अपनी बेरोजगारी की

समय ने दे दी उपाधि हमें

फ़ालतू के हमेशा 'सिर खपाने की'


कभी-कभी तो

चिढ़ सी हो जाती इतना

सोचता हूँ मैं

लिख डालूँ आज कितना..


कवि-हृदय हूँ मगर

परिवार से बंधकर

समय निकाल ही लेता हूँ,

दिल की तसल्ली के लिए..!


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