चुहिया रानी
चुहिया रानी
चुहिया रानी बड़ी सयानी,
सारे जंगल की वह नानी.
एक दिन जिद कर बैठी,
सिनेमा घर में जा बैठी.
चूहे राम ने बहुत समझाया,
उसकी समझ कुछ न आया.
घूँघट की ओट में न देख पाई,
बिल्ली मौसी भी थीं सपरिवार,
'म्याऊँ' सुन कर भागी चुहिया,
चूहा रह गया अकेला बेचारा,
मौसी ने उस पर झपट्टा मारा,
इंटरवल में 'नाश्ता'खूब उड़ाया,
चुहिया रह गयी अकेली बेचारी.
फिर कभी सिनेमा में न बैठी,
सिर मुंडा कर हरिद्वार जा बैठी,
आज भी चूहे राम की याद में,
बहुत-बहुत आँसू बहाती है,
रोज सुबह शाम पूजा से पहले,
पावन गंगा में डुबकी लगाती है।