चंद लाइन...
चंद लाइन...
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भौरा फूल-फूल मंडराये पाने को पराग
धीमी रोशनी लग रही जैसे चाँद चिराग़
लता पुष्प से लिपट गई, आया जब फ़ाग,
संगीत ध्वनि बज उठी, जैसे राग-अनुराग।
प्रकृति ने बाँट दिए जैसे मौसम विभाग,
एक आए दूजा जाए, बनता क्रम संभाग
देख सौन्दर्य भरी मृदा, बुझी तन्हाई आग,
कुदरती हर रूप निराला, नहीं इसमें दाग।
शब्द नहीं बन पड़ रहे, ये कैसी है लाग,
"उड़ता"खुदको जान, उठ नींद से जाग।