STORYMIRROR

डॉ.निशा नंदिनी भारतीय

Children Stories

3  

डॉ.निशा नंदिनी भारतीय

Children Stories

चार सीढ़ियों का जीवन

चार सीढ़ियों का जीवन

1 min
296

अद्भुत है जीवन की सीढ़ी

पार करते ही एक                    

दूसरी आ जाती है

सभी की है अपनी मंजिल

सभी का है अपना अस्तित्व।


जन्म लेकर माँ के गर्भ से

खेला माँ की गोद में

लड़खड़ाते पैरों से

धरती का किया स्पर्श

चलना सीखा, 

भर के एक एक डग

रोया-हंसा दौड़ा-भागा                             

ताली बजा खिलखिलाया

तितलियाँ पकड़ने को जी ललचाया।


यह बचपन छोटा सा प्यारा सा

था कुछ ही दिनों का मेहमान

लिए किताबों का बोझ

चल पड़े दूसरी सीढ़ी पर

मित्रों के साथ खेलते कूदते

लेते गुरूओं का आशीर्वाद

कब हो गई पार दूसरी सीढ़ी

पता ही न चला।


जवानी का सुखद अहसास लिए

आ गई तीसरी सीढ़ी

वैवाहिक बंधन

बच्चों का जन्म

नौकरी की दौड़ धूप

परिवार का बोझ


मशीनी जीवन

खट्टे मीठे अनुभव लिए

चलता रहा संसार

फिर एक दिन अचानक

बालों में सफेदी दिखाई देते ही


चौथी सीढ़ी ने दी दस्तक

हम घबरा कर मुड़े ही थे

कि पीठ और कमर के दर्द ने

लाठी पकड़ा दी

अब यह लाठी ही सहारा

बनकर

ढो रही है शरीर के बोझ को।


और कर रही इंतजार

एक माँ के गर्भ से निकल कर

दूसरी माँ के गर्भ में समाने का।

और अनायास ही

याद आती हैं वह पंक्तियां


सबसे प्यारा बचपन

सबसे छोटा बचपन

सबसे बुरा बुढ़ापा

सबसे बड़ा बुढ़ापा।


Rate this content
Log in