चाँदनी
चाँदनी

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गर्मी की वो रातें जब,
ठंडी झोंकों से बातें होती थी।
चाँदनी में लेटे लेटे, आसमान में
छुपे चेहरों की बातें होती थी।
टिमटिमाते तारें जो,
सुख दुख के गवाह थे।
आज उनके झलक को भी ,
हमारी आँखें तरसती हैं।
चाँद की चाँदनी जो,
पूरे छत को चमकाती थी।
पूर्णिमा में जो शहद बरसाती थी।
माँ की खीर में भी,
फिर मिठास सी भर जाती थी।
वह चाँदनी मिट गई,
इमारतों के चकाचौंध में
वो चाँदनी गई, मिठास ले गई।
चौंधियाती आँखों में, अँधकार छोड़ गई।