चाँद
चाँद
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उस चांद से पूछो कभी,
वह चांद है या शख्स कोई,
सिर्फ रात में नज़र आता है।
क्या दिन की कोई फिक्र नहीं,
उजाले में सो जाता है।
वह अक्सर साथ निभाता है,
सबका हमसाया कहलाता है,
कभी अब्र में खो जाता है,
कभी बर्क में सो जाता है।
आधा-आधा हो जाता है,
कभी पौना हो जाता है,
इक तारे को छोड़ अकेला,
गायब पूरा हो जाता है।
सितारों की इक भीड़ लिए,
रातों में मेरे घर आता है,
खिड़की से दरवाजे तक,
पहरे खूब लगाता है।
यूँ घूम फिर के इक बच्चा,
जब बिस्तर को गले लगाता है,
यही गांव-गली के बच्चों का,
चंदा मामा कहलाता है।