चाँद हथेली पर
चाँद हथेली पर
चाँद हथेली पर
चाँद हथेली पर लिए
घूमते थे हम।
वो भी क्या दिन थे
जब जवाँ थे हम
अहसास ही बहुत था
साथ होने का
ख़्वाब में मिलकर
मर मिटते थे हम
वो भी क्या दिन थे
जब जवाँ थे हम
चाँद हथेली पर लिए
घूमते थे हम।
सूखे दरख्त भी हरदम
देते दिखाई हरे
बिन पानी के
पानी-पानी
हो जाते थे हम।
वो भी क्या दिन थे
जब जवाँ थे हम
चाँद हथेली पर लिए
घूमते थे हम।
था साथ दोस्तों का
खुशनसीब थे हम
चिंता फिफ्र परेशानियों को
पतंग सा उड़ाते थे हम।
वो भी क्या दिन थे
जब जवाँ थे हम।
चाँद हथेली पर लिए
घूमते थे हम।
