चाह ऐसी भी
चाह ऐसी भी
चाह ऐसी है की
थोड़ा मिले तो और चाहता है
चाह ऐसी है की
थोड़ा मिले तो और चाहता है
ओर मिले तो आदत बन जाती है
ना मिले तो छीनना चाहती है
देख देख कर लालच बन जाती है
चाह ऐसी है की किस्मत बन जाती है
चाह तो उस सिपाही की है जो भारत माता पर
मरना चाहती है परिवार होके भी भारत को चाहती है
अपने बच्चे छोड़ दुसरे के बच्चे को बचाना चाहती है
लालच अपनी भारत माता की है
मर कर भी भारत के लिये फिर मरना चाहती है
गोली काकर फिर भी लड़ना चाहती है
पैर कट जाए तो भी भारत के लिये मर मिटना चाहती है
सलाम है उन सिपाहीओ पर जो खुद
अपना परिवार त्याग कर दूसरों को जीना सिखाते है
चाह ऐसी है की सिपाही तुझे देख
अपने सारे गम भुलाकर फिर ज़िन्दगी जीना चाहती है