बूढ़ा पीपल
बूढ़ा पीपल
मेरे घर के बाहर
लगा हुआ यह बूढ़ा पीपल,
कब से इस सूखी जमीन पर
खड़ा हुआ यह बूढ़ा पीपल।
मेरे सुख दुख का साक्षी
मेरा हम-दम मेरा साथी,
जब भी कभी उदास होती
इसके नीचे सकून पाती,
कभी मां के आंचल सा लगता,
देता पिता सी छाया पीपल।
काम इसका सबसे बड़ा
प्रकृति को दे शुद्ध हवा,
नफरत का क्यों भागी बना
पूजन में यह देव छवि,
क्यों रखते घर के बाहर,
सोच रहा यह बूढ़ा पीपल।
कितने तूफानों को खुद पर झेलता,
कभी सावन में झूला झूलाता,
संग सभी के झूलता गाता,
आज क्यूं यह उदास पीपल।
कोई भी ना अब छाया में आता
किसी को फूटी आँख न सुहाता,
ना जाने कब गिर जाए,
अपनी व्याख्या सुनाता पीपल।