बुढ़ापे का दर्द
बुढ़ापे का दर्द
क्यों बुढ़ापे में हम मां-बाप को छोड़ आते हैं
भूल जाते हैं उनके फर्ज को अपना कौन सा फर्ज निभाते हैं।
एक पिता कर्ज उठाकर
माता कंगन मंगलसूत्र बेचकर हमें पढ़ाती है
हमने कोई घर नहीं बनाया
हम उसको ही अपना बताते हैं।
आज हम उन्हें पानी तक नहीं देते
वे जरा सी खांसी पर डॉक्टर बुलाते हैं
बचपन में जिस के साथ रहते हैं हम क्यों बड़े हो जाते हैं
मां-बाप को बुढापा में छोड़ आते हैं।
मेरी मां जब नानी के घर जाती थी
नानी ,मां से एक सवाल करती थी
कि बेटी तेरे कंगन झुमके मंगलसूत्र कहा गए
मां हंस कर कहती कि मेरे कंगन मंगलसूत्र झुमके खो गए।
फिर बंद कमरे में जाकर रोती है और कंगन मंगलसूत्र झुमके से मां की शोभा होती है।
बोझा उठा उठा कर पिता के कांधे टूट जाते हैं
हमारे लिए क्या नहीं किया हम ही उनसे रूठ जाते हैं।
बचपन में जो साथ रहते हैं
क्यों बड़े हो जाते हैं
बुढ़ापे में मां-बाप को छोड़ आते हैं।