बसंत
बसंत
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फिर छाया बसंत,
सजी धरती आज फिर,
पीली चुनरिया ओढ़कर,
हर तरफ छाई है,
फूलों की महक,
हर कोई खुश है,
आम की बोर देखकर,
सूरज ने भी आखें खोली,
सरसों भी फूली चारो,
आया सखी फिर से बसंत,
कोयल की कूक है चारो ओर,
सब कुछ लगता कितना नया,
फागुन खड़ा है दरवाजे पर,
सब पर मस्ती छाई है,
माँ सरस्वती की,
आराधना की धूम मची है,
हर कोई नाच रहा है,
ठण्ड से राहत मिली है,
आया सखी फिर से बसंत।।