बसंत!
बसंत!
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छवि अलौकिक,
रक्तिम आभा,
चंचल नील बसंती बयार,
सपनों से शोभित है मन,
फिर हुआ नवल ऋतु प्रारंभ,
आलिंगन कर आई नई ऋतु,
बहे फिर चंचल नव पवन,
महक उठा है , चहक उठा है,
पलाश बन सबके मन उपवन,
अलौकिक आनंद अनोखी ऋतु,
चारों ओर छा गया बसंत,
खिल रही है डाली डाली,
खिल रहे हैं हर कोपल,
छा गई चारों ओर हरियाली,
फिर तशरीफ लाई बसंत,
मां शारदा का है आगमन,
अलौकिक छटा निहारे अंबर,
सूर्य की चमकती उजली किरण,
धीमी धीमी मुस्काई चंद्रकिरण,
करती आनंदित सबका मन,
लो आ गया बसंत माता शारदा का है आगमन!
