बरगद की छांव
बरगद की छांव
पिता की छांव में
घर के बगिया की
शान है बेटियां ,
अपने कुल की
पहचान है बेटियां,
बरगद की अस्तित्व में
बुलबुल बन चहकती हैं ,
ये आंगन की नन्हीं कलियां
घर को सँवारती हैं
महकाती हैं, सजाती हैं।
फिर एक दिन आता है
जब अपने अस्तित्व
अपनी पेहचान से
परे हो जाती है बेटियां,
अब इस बगिया की कली
किसी और के आंगन का
फूल बनकर खिलेगी
मेरी नन्हीं कली
अब अपने पति का घर महकाएंगी ।
फिर एक दिन वो भी
मां बनकर
एक कली या भवरें
को जन्म देंगी ,
और फिर घर की बगिया की शान
ममता के आँचल में
रुप नया बहोरेंगी ,
अपने घर आंगन को
फूलों की सुगंध से
इतिहास बन महकाएंगी,
नवीन रूप दिखाकर
वक़्त बदल जाएगीं ।