बोझा
बोझा
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स्कूल जाती एक बच्ची
जो कि मन की सच्ची
बस्ता टांगे वो भारी सा
बढ़े जा रही वो जल्दी
पापा संग वो जल्दी जल्दी
नन्हे कदमों से वो भाग रही
भारी बहुत था उसका बोझा
पापा को बस्ता पकड़ा रही
थकी थकी सी वो बच्ची
अब खुल के मुस्करा रही
कंधे से जो हट गया बोझा
स्कूल को वो तो भाग रही
पापा ने जब बस्ता पकड़ा
वजन से वो तो झुक गए
बच्ची पर कैसे बोझा लादा
इसी सोच में वो पड़ गए
अपने पर अफसोस हुआ
क्योंकि वो अब समझ गए
रोज लेकर खुद वो बस्ता
बच्ची को लेकर स्कूल गए.
