बंटे हुए दीवारों में
बंटे हुए दीवारों में
रिश्तों की मिठास नहीं अब,
पाते हैं परिवारों में ।
खंडित है परिवार आज सब,
बंटे हुए दीवारों में ।।
सम्बंधों की डोर मखमली,
आज विषेली डोरी है ।
कहाँ रहे संयुक्त कुटुम्ब अब,
दादी की गुम लोरी है ।।
चाची ताई नहीं दिखती ,
है घर के गलियारों में ।
खंडित से परिवार आज सब,
बंटे हुए दीवारों में ।।
एक ही घर में सदस्य संख्या,
देखी है सौ से ऊपर।
भले नहीं पक्के मकान हों,
सजे धजे रहते छप्पर।।
कौन मिलाता नजरे उनसे ,
गिनती थी सरदारों में ।।
खंडित है परिवार आज सब,
बंटे हुए दीवारों में ।।
करवट देखो समय ले चुका,
मतलब के सब बंदे है
त्याग भावना दफन हो गई ,
लगे मोह के फंदे है ।
डाका डाल रहे है हक पर,
बैचेनी हकदारों में ।।
खंडित है परिवार आज सब,
बंटे हुए दीवारों में ।।
कांपा करते थे तन मन सब,
दादा की ललकारों से।
छिपा लिया करती थी ताई,
ताया के हर वारों से ।।
संबल देता था चाचा का,
प्यार बहुत अंगारों में ।
खंडित है परिवार आज सब,
बंटे हुए दीवारों में ।।
खूब झगड़ते थे बच्चे पर,
बच्चे नहीं पराए थे।
रिश्ते में कुछ भी लगते हो।
लगते अपने जाए थे ।।
हर नारी में ममता बैठी ,
थी "अनन्त" व्यवहारों में ।
खंडित है परिवार आज सब,
बंटे हुए दीवारों में ।।