बंदर
बंदर
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मदारी ने फिर डुगडुगी बजायी
बन्दर से फिर पलटी लगवाई
तमाशबीनों की अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई इस बार भी
मदारी की डुगडुगी से भय खाए बंदर ने
तमाशा किया था पहले विभाजन का, अल्पसंख्यक का
इस बार आरक्षण का
बन्दर बेचारा हर बार आहत होता
किन्तु नाचता मजबूर होकर
आखिर मदारी उसका जीवन दाता था
अन्नदाता था और मालिक भी
तो बंदरों ने खूब उछल कूद मचाई
तमाशबीनों ने आनन्द लिया
मदारी ने उसे हनुमान करार दिया
बस तब से बंदर कभी भय से, भूख से
कभी जनार्दन बनकर पलटी खा रहा है
और मदारी अपनी भीड़ बढाता ही जा रहा है.