बीते दिन न वापिस आएँगे
बीते दिन न वापिस आएँगे
बचपन के दिन
राजा-रानी की कहानी
सुनाती थी हम को नानी
याद आती है वे सब पुरानी ।
बचपन के दिन
न गरमी न सरदी
सुबह से शाम मस्ती
दोस्तों के संग यही चलती।
बचपन के दिन
होती थी कुछ पढ़ाई
छोटी सी बात पर लड़ाई
जल्दी ही फिर दोस्ती बढ़ाई।
बचपन के दिन
स्वच्छ थे सब मन
न किसी से छल न कपट
बिन्दास जीवन न भय न डर ।
बचपन के दिन
थे हम सब शहंशाह
मिट्टी के घरौंदे जैसे महल
दिल से बना व मस्ती से गिरा।
बचपन के दिन
वर्षा में बेधड़क नहाना
दूसरों को भी भिगाना ,चिल्लाना
न लौटकर आएगा कभी वो फिर जमाना।
बचपन के दिन
तरसतें हैं उन दिनों को
दोपहरी में आम तोड़ना
शाम को गुल्ली डंडा खेलना ।
बचपन के दिन
अब न माँ से जिद्द
न पिता से डाँट व पिटाई
जीवन की चक्की में होती है पिसाई।
बचपन के दिन
काश! फिर लौट आएँ
बच्चे बन फिर शौर मचाएँ
माँ पापा की डाँट -आशीर्वाद पाएँ।
