भरोसा- महामारी
भरोसा- महामारी
किसी का हाथ छूट न जाए
किसी का साथ छूट न जाए
कर लो गुफ्तगू सब से
कही ये सांस छूट न जाए
रखो न मन में कोई बात
न खेलो दिल से शह और मात
वक्त हुआ बड़ा काफिर
कहीं ये वक्त निकल ना जाए
सांसो में मौत चीख पुकार
रिश्ते हो रहे हैं बेज़ार
शहर में अपने बहुत मेरे
बिछड़ अपने कहीं न जाए
दवा से हो रहे महरूम
दुआओं का सहारा है
हुआ ग़ुम दुआ दवा के बीच
दवा नकली निकल न जाए
नहीं ईमान की कीमत
गिद्ध फिर आज हुए काबिज़
कब्र में लाशों को चिंता
कफ़न चोरी न अब हो जाए
वक्त की लाल आँखों में
भरा है ख़ौफ़ का मंज़र
सम्भल जा ओ ज़रा सुनील
कहीं दुनिया निगल न जाए ।
