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Madhu Gupta "अपराजिता"

Inspirational

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Inspirational

भक्ति

भक्ति

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भक्ति का रूप है अनूठा हो जाए जिसके भी प्रति। 

समर्पित करता है ख़ुद को सुध बुध फ़िर वो कहाँ रखता है।। 


भक्त और भक्ति का स्वरूप दीया और बाती सा होता। 

लगा रहता है सदा ध्यान उसमें जीवन उसी में लीन है रहता।। 


भक्त का रिश्ता भक्ति से मासूम बच्चा और माँ सा होता है। 

समीप आँचल पकड़ कर भक्त हर सुख दुःख को उसी से कहता है।।


बहुत शक्ति है भक्ति में निरंतर भक्ति से आशा उपजती है। 

करुणा सदैव रहती हृदय में राग द्वेष का ना वास रहता है।।


बहुत निर्मल हो जाता है मन प्रेम की धारा बह उठती है। 

वैराग फ़िर ना हृदय को डराता सदा आनंदित हृदय रहता है।।


भक्ति किसी के भी प्रति हो भक्त फ़िर ख़ुद का नहीं रहता।

आत्मा और शरीर को सौप दुनिया के मोह से मुक्त हो कर रहता है।। 


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