भीगे नयन मेरे
भीगे नयन मेरे
1 min
300
उस दिन अकेली ही थी
जब सुनसान राह पर चल रही थी मैं,
साँझ घिर आयी थी
पंछी लौट रहे थे नीड़ को,
अचानक से छा गये घनघोर बदरा
बरखा ने भी कहर मचाया।
न जाने कहाँ से कुछ लोग आ गये
घेर कर खड़े थे मुझको,
न चीख पायी, न चिल्ला पायी,
वहशी जानवर से टूट पड़े थे वो,
उस से पहले कि मैं कुछ कर पाती,
अपने आपको बचा पाती,
पसीने से लथपथ हो गयी थी मैं,
उठ कर देखा तो एक बुरे ख्वाब से जागी थी मैं,
खुदा की रहमत से सही सलामत थी मैं।
