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कल्पना रामानी

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कल्पना रामानी

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बेटियाँ होंगी न जब -ग़ज़ल

बेटियाँ होंगी न जब -ग़ज़ल

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गर्भ में ही काटकर अपनी सुता की नाल माँ!

दुग्ध-भीगा शुभ्र आँचल मत करो यों लाल माँ!


तुम दया ममता की देवी, तुम दुआ संतान की

जन्म दो जननी! न बनना, ढोंगियों की ढाल माँ!


मैं तो हूँ बुलबुल तुम्हारे, प्रेम के ही बाग की

चाहती हूँ एक छोटी सी, सुरक्षित डाल माँ!


पुत्र की चाहत में तुम अपमान निज करती हो क्यों?

धारिणी जागो! समझ लो, भेड़ियों की चाल माँ!


सिर उठाएँ जो असुर, उनको सिखाना वो सबक 

भूल जाए कंस कातिल, आसुरी सुर ताल माँ!


तुम सबल हो आज यह, साबित करो नव-शक्ति बन 

कर न पाए कापुरुष ज्यों, मेरा बाँका बाल माँ!


ठान लेना जीतनी है, जंग ये हर हाल में 

खंग बनकर काट देना, हार का हर जाल माँ!


तान चलना माथ, नन्हा हाथ मेरा थामकर

दर्प से दमका करे ज्यों, भारती का भाल माँ!


“कल्पना” अंजाम सोचो, बेटियाँ होंगी न जब 

रूप कितना सृष्टि का, हो जाएगा विकराल माँ! 


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