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Arti pandey Gyan Pragya

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Arti pandey Gyan Pragya

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बेटी

बेटी

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हँसाती है बेटी रुलाती है बेटी,

कई घाव अपने छुपाती है बेटी।

वो मईया का आँचल है बाबा की पगडी़,

है पीली सी हल्दी कुटुम्ब की है प्रहरी।

वो गंगा की धारा है फिर भी बटोही,

है कोयल की मीठी सी प्यारी सी बोली।


हँसाती है बेटी रुलाती है बेटी,

कई घाव अपने छुपाती है बेटी।

वो पलकों सपने हजारों सजाती,

वो परियों की बातों को सच कर दिखाती।

वो है इस धरा की गठरी प्यार वाली,

वे सृष्टिकर्त्ता की रचना निराली।


हँसाती है बेटी रुलाती है बेटी,

कई घाव अपने छुपाती है बेटी

वो बाबा के घर से पिया घर को जाती ,

वो बचपन का आंगन वहीं छोड़ आती।

वो सोंधी सी मिट्टी की खुशबू सताती,

खिलौने वो मिट्टी के सब छोड़ आती।


हंसाती है बेटी रुलाती है बेटी,

कई घाव अपने छुपाती है बेटी।

वो यादों को रखे ह्रदय में समेटे,

वो इंद्रधनुषी समय साथ लेकर।

सजायेगी बेटी संवारेगी बेटी,

धरा पर नव क्रांति चलाएगी बेटी।



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