बेटी के सपने
बेटी के सपने
नित नित नए ज्ञान को पाऊँ, ऐसे स्थान भिजवा दो मां ।
नये नये अक्षर ज्ञान प्राप्त करूँ, ऐसे स्कूल भिजवा दो मां ।।
गुरुजनों का मिलें जहाँ चरण कमलआसरा, ऐसा बौद्धिक ज्ञान करा दो मां ।
नकारात्मक सोच छोङ, घर के काम काज से छुटकारा दिला दो मां ।।
पुराने रीति रिवाज छोड़, नये आधुनिक युग से अवगत करा दो मां ।
जहाँ मानवता की मझधार बहे, ऐसी नैया पार लगा दो मां ।।
भैया के साथ मैं भी पढने स्कूल जाऊं, ऐसा पापा से कहलवा दो मां ।
अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं, ऐसी बागडोर मेरे हाथों थमा दो मां ।।
न भेद भाव हो बेटा बेटी में, ऐसा भाव देश-समाज में जगादो मां।
न दहेज की बलि चढे बेटियां, ऐसा संस्कार ज्ञान करा दो मां ।।
न दुष्कर्म की सीकार हो बेटियां, मानवता को ऐसा पाठ पढा दो मां
न भ्रूण हत्या हो, न स्त्री जाति शर्मसार हो, ऐसा अहसास दिला दो मां ।।
सीमा पर पहरी बन, देश की रक्षा करूँ, ऐसा रूतबा सिखा दो मां ।
समाज में फैली बुराइयों को दूर कर सकूं,ऐसा सरोकार करवा दो मां ।।
परिवार में कर्तव्य पालन कर सकूं, ऐसा वात्सल्य बहा दो मां ।
अपनी सुरक्षा खुद कर सकूं, ऐसी विरांगना बना दे मां।।