बेगैरत तो न बना ज़िंदगी
बेगैरत तो न बना ज़िंदगी
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न इम्तिहान ले ज़िंदगी इतने कि
सब्र का बांध ही टूट जाये..
बह जाये सैलाब में हम और
हमारा नामो निशां खत्म हो जाये
सजा उसकी दे जो ख़ता करी है
गुनहगार उसका मत बना जो
ग़लती करी ही नहीं
गैरत मुझ में भी बाकी है अभी
इस तरह बेगैरत तो न बना ज़िंदगी.....