बचपन
बचपन
आओ आज सुनाता हूं
तुमको मेरी एक कहानी,
बचपन के मेरे यादों की
प्यारी - प्यारी सी ये जुबानी,
हंसते खेलते रोते गाते
खेल खेल में ही दुनिया बनती,
संसार था ये अजीबोगरीब
रस प्रेम का हम इसमें ही पाते,
कभी डाल पर कभी पेड़
कभी कमर पर कभी पेट पर,
कभी उंट पर कभी भेड़ पर
करते हंसी ठिठोली घर घर,
जीवन था सादा सरल वो प्यार
देख कर इसको आ जाता दुलार,
चेहरे पर आता न कभी दुख का सागर
यही थी सबके बचपन की डगर,
हंसी थी चेहरे पर दिल की वो
हो जाए मगन जो देखे उसको,
दिल में न था कोई कपट किसी के
सुनना है जिनको वो सुनो बचपन को,
गली गली में था होता शोर
इसका मतलब वो नहीं था चोर,
शरारत का गढ़ होता था वहां
बच्चों संग नाचते मोर जहां,
रूठते मनाते मनाकर भी रूठते
रिश्ते हमारे कभी यूं ही न टूटते,
जीवन में ये तो आम बात थी तब
रूठ कर भी वापस मनाते थे जब,
बचपन होता है इस जहां में जन्नत
आओ हम सब मांगे आज इसकी मन्नत,
मिलकर इसको सुनहरा बनाते है
"स्वर्ण" से आपको आज मिलाते हैं।।
