"बचपन"
"बचपन"
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बचपन की कोमलता,
मासूमियत कहां गई।
न चिंता न परेशानी,
सुकून की वो जिन्दगी कहां गई।
माता-पिता का प्यार,
खूब मिलता था।
सुनकर मां की बातें,
मुख कमल जैसा खिलता था।
साथ में खेलते थे खाते थे,
लड़ते थे, झगड़ते थे।
फिर एक हो जाते थे।
न जाति का था बंधन,
खूब भाईचारा था।
लगाते थे चक्कर,
घर-आंगन हमारा था।।
