बचपन
बचपन
समय हमे कहाँ से कहाँ ले जाता है
कुछ खट्टी मीठी यादें देकर जाता है
उम्र का हर पड़ाव हमे है सिखाता
काश वो बचपन फिर लौट आता।
हर पल उमड़ती मस्तियाँ ही तो थी
सोच विकसित नहीं पर यारियां थी
नंगे तन खेलने का मजा निराला था
माँ का खिलाया हुआ वो निवाला था।
वो तब पानी में हमारे जहाज चलते थे
जब बारिश में हम उछल कूद करते थे
कहाँ दिलों में तब हमारे दूरियां थी
फिर द्वेष किया क्या मजबूरियां थी।
ना अपने पराये का हमे तब ज्ञान था
ना पनपने वाली खाई का भान था
क्यों दिलों में फिर हमने जलन भरी
क्यों आज ख्वाहिशें है अपनी अधूरी।
समझदार तो हम बहुत हो गए हैं अब
पर ऊंच नीच ईर्ष्या जलन नहीं थी तब
बड़े होकर आज हमने क्या पा लिया है
अपनो को गैर, दुखों को अपना लिया है।
ना जाने यह सोच लेकर कहाँ जाएंगे
वो बचपन के दिन लोट के ना आएंगे
काश जमाने मे सब अच्छे ही रहते
दिल कहता है की हम बच्चे ही रहते।
वो शैतानियां वो माँ की प्यारी फटकार
वो अपनापन पाप की गुस्से से दुत्कार
आधी रोटी खाना दिनभर गली में भागना
वो तोतली जबान में बहन भाई से लड़ना।
कोई तो आज हम वो दौर याद दिलाते
काश वो बचपन के दिन अब लौट आते।