बचपन
बचपन
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बचपन के दिन भी क्या दिन थे
उड़ते फिरते तितली बन,
कभी पतंग उड़ाते ,
कभी माँ से रूठ जाते
अपनी बात मनवा लेते
कभी कंच्चे खेलते ,
कभी कागज की नाव
पानी में चला कर
अपने को शूरवीर समझते ।
कभी दौड़ भाग कर
घर में आतंक मचा ते,
सबको परेशान करते ,
दुःख सुख का कुछ ज्ञान नहीं था
बस अपनी धुन में रहते मस्त।
बस यही है बचपन।
