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Sudha Sharma

Children Stories

4  

Sudha Sharma

Children Stories

बचपन

बचपन

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वाह रे बचपन

कितना सहज सरल होता था, 

बचपन में हंसना और हंसाना। 

कागज की कश्ती ले लेकर, 

कल्पनाओं में सागर तिर आना।।


मई-जून की भरी दोपहरी,

 गलियों से कंकड़ चुग कर लाना। 

कागज के नकली नोटों से, 

जग का बड़ा धनिक बन जाना।।


 बांध मम्मी की चुन्नी सिर से,

 पल में शक्तिमान बन जाना।

 डॉक्टर वकील शिक्षक बनकर, 

अति सुंदर संसार सजाना।। 


 दस रुपये का हाथी द्वारे पर, 

पिस्तौल बंदूक रोज चलाना। 

अभाव था पर भाव नहीं था, 

चिंता चिंतन का नाम नहीं था।।


पल लड़ना और झगड़ना, 

ईर्ष्या द्वेष का भाव नहीं था।

पूरी कोर्ट कचहरी मां बाबा, 

किसी से डरने का काम नहीं था।।


बाल्टी भरा पानी सागर था,

 छप छप से स्वर्गिक आनंद था। 

बर्फ के गोले में जो सुख पाया, 

रबड़ी मलाई बादाम वहीं था।।


राजा सा जीवन था अपना,

जेब में खोटा दाम नहीं था।

स्वर्ग जैसी दुनिया लगती थी, 

खुशियों का कोई दाम नहीं था।


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