बचपन की यादें
बचपन की यादें
बचपन में,
पापा के कंधों पर मैं चढ़ी।
मांँ की गोदी में खूब खेली।
अब ऐसा लगता है मुझको कि,
बचपन की दुनिया ही थी,
सबसे अलबेली।
बचपन में थी मैं,
सभी को बहुत ज़्यादा प्यारी।
बचपन की दुनिया थी,
सच में सबसे ज़्यादा न्यारी।
बचपन में दुनिया मुझको,
‘पापा की परी’ कहकर बुलाती थी।
मेरा मन बहलाने को,
मांँ मुझे परियों की कहानी सुनाती थी।
बचपन में हर रात को,
मांँ लोरी गाकर सुलाती थी।
कितना अच्छा लगता था जब,
मैं सपने में पेड़ से,
चॉकलेट्स तोड़कर खाती थी।
अपने चिप्स खाने के बाद,
मेरे चिप्स भी खाता था।
मेरे सारे सामान पर हक से,
अपना हक जताता था।
‘छोटा भाई-सास समान’
कहकर दिन भर ताने मुझको देता था।
‘ससुराल जाकर याद करोगी,
मेरी यह सारी शैतानी।’
कहकर मुझको खूब चिढ़ाता था।
नए-नए बहाने रोज़ बना,
छोटा भैया मेरा मुझसे,
हर बात पर रोज़ झगड़ता था।
जाने-अनजाने में ही सही,
शायद सब सच कहता था।
सब कुछ है जीवन में अच्छा-अच्छा।
पर,
बचपन सबसे ज़्यादा अच्छा था।
बचपन सबसे ज़्यादा अच्छा था।
बहुत याद आता है वो सब,
लड़ना-झगड़ना
और ‘अ से अनार’ पढ़ना।
कभी-कभी स्कूल ना जाने के लिए,
बहानों की बौछार करना।
खूब देर तक सोने के लिए,
संडे का इंतज़ार करना।
आज दिन कैसे भी हों,
बचपन के दिन तो सोने के थे।
छोटे-छोटे थे जब हम,
हर सपने सलोने से थे।
बचपन में सोचते थे हर पल,
जल्दी से हम बड़े हो जाएंँ।
अब यही सोचते हैं हर क्षण।
क्यों इतनी जल्दी बड़े हो गए?
घर के आँगन में खेलते-खेलते,
ना जाने कब हम बड़े हो गए।
अब शिकायत यही है हर पल।
क्यों बचपन के वो सुनहरे दिन खो गए?
क्यों बचपन के वो सुनहरे दिन खो गए?
