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Abhishek Singh

Others

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Abhishek Singh

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बचपन का प्रेम

बचपन का प्रेम

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न मैंने चुना तुझे

न तूने चुना मुझे

फिर ये नज़दीकियाँ कैसे?

न मैंने देखा तुझे

न तूने देखा मुझे

फिर ये चाहत कैसे?


न मैंने सुना तूझे

न तूने सुना मुझे

फिर ये बातें कैसे?

क़िस्मत में मंज़ूर था जो जैसे

होता गया वो वैसे।

दो पिता की दोस्ती

हमारे बचपन को

रिश्तों में बदलना चाहा जैसे।


मिलने का रास्ता प्रशस्त

होता गया वैसे।

घर में विवाह का माहौल आया जैसे

मिलने का अवसर साथ लाया तैसे।

मानो सपनों का हक़ीक़त में

साकार होना था जैसे।



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