बालिका दिवस
बालिका दिवस
बचपन से ही बेटी गुड़ियों का शौक रखती है
कभी बाल बनाती कभी कपड़े पहन आती अपनी गुड़िया को सवारती चली जाती है|
कभी गुड़िया के लिए रोती तो कभी खुद ही एक गुड़िया बन जाती है|
पिता की लाडली बेटी गुड़िया लेने केेेेेेेेेेेेेेेे लिए मां के आने पर पिता के पीछे छुप जाती है
जैसे पूरी दुनिया से लड़ कर ही गुड़िया लेकर जाती है।
दिन-ब-दिन उसकी गुड़िया बदलती चली जाती है
और वो मुस्कुरा कर एक नई गुड़िया फिर ले आती है
मां नाराज हो जाती किसी गुड़िया का टांग उठाती किसी गुड़िया का
कपड़ा उठाती फिर सब समेट कर उस गुड़िया को बनाती।
मां से आकर कहती बस इसके बाद गुड़िया नहीं लूंगी कुछ दिन के बाद फिर गुड़िया लेकर आती फिर गुड़िया के बालों को बना बना कर कर उसे टकली कर डालती और फिर गुड़िया लेकर आती|
बेटियां भाग्य का उदय बनकर है आती
यह अपनी मां क़ो मान - सम्मान दिलाती
मां बनने का सुख है देकर गर्व का अनुभव कराती
बेटियां अपनी मां का मान है बढ़ाती
बेटियां हमेशा घर है बनाती
टूटे हुए रिश्ते को भी आसानी से जोड़ती है चली जाती
बेटी के बिना पिता का प्यार अधूरा ही रह जाता
क्योंकि पिता की सबसे चहेती बेटियांं हो जाती ।