बाल मनोविज्ञान
बाल मनोविज्ञान
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बाल मन को
पढ़ने की
कोशिश जटिल,
बाल मनोविज्ञान
नई राह दिखाता।
बाल मन है
बहुत नाज़ुक मन
कब क्या सोच ले
कब क्या
चाह ले
कोई न जाने
सपनों की
अलग दुनिया
बसाता।
कब, किस बात पर
रूठ जाए,
कब किस पर
प्यार लुटाए
कोई न जाने
ज़िद पर अपने
शोर मचाता।
जिन दोस्तों के साथ
खेलता,
उन्हीं से बात-बात पर
लड़ाई करता।
अपनी चीज़े किसी से
न बाँटता।
कभी जोर से रोना,
कभी खिलखिला कर
हँसना।
दुनिया के कायदे,
न जानता।
कभी गुमसुम
चुपचाप रहता
कभी अकेले में
खुद से ही
बतियाता।
