बादल पानी
बादल पानी
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मेरी कविता खुशनुमा महल
घूमती है डगर दर डगर
शबनमी रंगो की ओढ़े चूनर
मंडराती है ये नगर नगर।।
कविता है मेरे दिलो का स्पंदन
मदमस्त सपनों का है दर्पण
चाँद सितारों का मिलन
सुबह के सूरज की तपन।।
कविता सागर की लहरों में
प्रेम भरे इजहारों में
नये नये शब्दों के जालों में
ये आसमानी सितारों में।।
कविता होती है जलजला
होती है हौसलों भरा तूफान
बुलंद इरादो का ताजमहल
देश की गाथा का है यह गुणगान।।
कविता बादलो की झुरमुट में
बरसती बरसाती बूंदों में
छोटी बातो में हँसी में रुलाई में
कोयल की चहक भरी बोली में।।
कविता मेरी हरी भरी हरीयाली में
बागिया की खुशबू बहारों में
सृजन और संवेदना में
दु:ख दर्द सच और झूठ में।।