औरत
औरत
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औरत हूँ मैं।
जो तेरे बिखरे टुकड़ों को,
बड़े प्यार से है समेटती।
सभी समेटे टुकड़ों से फिर,
हूँ तेरा घर एक बनाती।
ब्रह्मा हूँ मैं।।
जो तेरा पालन करती है,
बड़े जतन से।
तेरे दुःख - सुख सब अपनाती।
तुझे जिलाती,
जीने की हूँ राह बताती।
विष्णु हूँ मैं।।
जो तेरे हिस्से में है बस,
अमृत ही अमृत रख जाती।
तेरे इस समाज के विष को,
हँसते - हँसते पी जाती हूँ।
पीकर भी मैं जी जाती हूँ।
शंकर हूँ मैं।।
औरत हूँ मैं।।