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Afsana Wahid writes Wahid

Others

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Afsana Wahid writes Wahid

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औरत

औरत

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औरत हूं मगर कमजोर नहीं हूँ मैं।

डरती नहीं हो कि किसी से लड़ने का हौसला रखती हूं।


यूं तो पड़ी है मेरे पैरों में समाज की दकियानूसी रस्मों रिवाजों की बेड़ियां।

पर उन बेड़ियों को भी पैरों में डालकर चलने का हौसला रखती हूं।


क्योंकि मैं औरत हूं हर रूप में मैं नजर आती हूं।

और हर रूप में मैं पहचानी जाती हूं।


कमजोर जो कहते हैं मुझे, मेरी ताकत का अंदाजा वह नहीं रखते हैं।

जिस को जन्म दिया मैंने ,वही मुझे कमजोर कहता है।

उसे क्या पता कि जन्म देते वक्त कितने दर्द मैंने सहे हैं।


मां एक औरत होती है।

और मां में इतना प्यार इतना अपनापन और इतनी ताकत होती है कि

वह अपने परिवार को जोड़ कर रखती है।


हां मैं औरत हूं और मैं कमजोर हूं।

क्योंकि मैं अपना दर्द सहती हूं, और किसी से कुछ नहीं कहती हूं।


हां मैं औरत हूं मैं कमजोर हूं।

मगर आज मेरी कमजोरी ने मुझे इतना मजबूत बना दिया है।


मैं औरत हूं और मैं कमजोर हूं।

मगर आज मैं हर वो काम कर सकती हूं जिसकी मैंने मन में ठान ली हो।


हां मैं औरत हूं और मैं कमजोर हूं।

इसलिए हर जगह में कुर्बानी देती हूं हर रिश्ते पर मैं वारी जाती हूं।


मैं उन रिश्तों को भी निभाती हूं।

जिन रिश्तों से में दर्द से कराहती हूं।


हां मैं औरत हूं और मैं कमजोर हूं।

अपने हक के लिए लड़ तो सकती हूं मगर किसी को दर्द नहीं दे सकती हू।


मेरी कुर्बानियों की गिनती भी कहां करता है कोई।

मैं अपने फर्ज को निभाती हूं पूरी जिम्मेदारी से यह जानता ही नहीं है कोई।


हां मैं औरत हूं और मैं कमजोर हूं।

मगर इस कमजोर औरत ने ही अपने परिवार के हर सदस्य को मजबूत बनाया है।


अपने सपनों को अपनी आंखों में छुपाया है।

अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है।


औरत को कमजोर समझने वालों।

एक बार अपने वजूद को तो पहचानो।


इस बात को तुम मानो।

के अगर यह कमजोर औरत ना होती तो तुम ना होते।

तुम्हारा वंश ना होता।


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